"आल्हा-ऊदल और बुन्देलखण्ड" (लेखक-कौशलेन्द्र यादव, ARTO-बिजनौर) पुस्तक को लेकर एक विवाद खड़ा हो गया है. प्रथम खंड में सम्मलित अंतिम चैप्टर "1857 की झूठी वीरांगना-रानी लक्ष्मीबाई" को लेकर ही इस पुस्तक का तमाम लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है, यहाँ तक कि लेखक के सर की कीमत भी 30,000 रूपये मुक़र्रर कर दी गई है. अब लेखक के पक्ष में भी तमाम संगठन आगे आने लगे हैं. सारी लड़ाई इस बात को लेकर है कि क्या इतिहास कुछ छिपा रहा है ? क्या इतिहासकारों ने दलितों-पिछड़ों के योगदान को विस्मृत किया है ? आप भी इस चैप्टर को यहाँ पढ़ें और अपनी राय दें-
बिहारीगंज में टेंपो चालकों से जबरन रुपए वसूली का मामला गरमाया
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मधेपुरा जिले के बिहारीगंज में टेंपो चालकों से जबरन रुपए वसूली का मामला
गरमाने लगा है. बताया गया कि कुछ तथाकथितों के द्वारा जबरन टेंपो चालकों को
डरा धमकाक...
7 घंटे पहले
11 टिप्पणियां:
इस विवाद की चर्चा मैंने भी हिंदुस्तान अख़बार में पढ़ी थी...पर इतिहास को सच्चाई स्वीकारने से नहीं रोका जा सकता.
...यह तो सच ही है कि यदि मातादीन ने मंगल पांडे को नहीं भड़काया होता तो मंगल पांडे का जमीर न जगा होता. इस पर विभूति नारायण राय का एक सारगर्भित लेख भी मैंने पढ़ा था.
अतीत के बारे में कुछ कहना बड़ा मुश्किल कार्य है, सो नो कमेन्ट.
अजी कार्य में दम हो तो चर्चा होना स्वाभाविक भी है....ब्राह्मणवादी शक्तियों को अपना विरोध कब बर्दाश्त हुआ है. वे तो आरंभ से ही इतिहास की व्याख्या आपने पक्ष में करते रहे हैं.
Ek bar fir se Brahmanvadi banam Dalit lekhan....dekhiye age-age hota hai kya.
..क्या विरोध करने से सच्चाई बदल जाएगी. कौशलेन्द्र जी का कार्य सराहनीय है.
PAKHANDIYON SATYA KO SWIKAR KARNA SIKHO , ABHI TO SURUAT HAI AAGE DEKHO KYA HOTA HAI
Interesting..
फेसबुक पर पोस्ट कर रहा हूं लक्ष्मीबाई की इस जानकारी को.
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